हर तरफ है बस निराशा, और अँधेरा दिल में है ।
रौशनी तो हर जगह है, बस सवेरा बिल में है|
यह पुस्तक दर्द आप लोगों के समक्ष प्रेषित कर रहा हूँ। वैसे तो यह देखने वाले की नजर पर निर्भर करता है कि वह किस पहलू को देखता है। जो जैसा सोचता है उसके ख्याल और विचार भी उसी दिशा में जाने लगते हैं। एक स्वस्थ सोच ही स्वस्थ जीवन प्रवाह दे सकती है।
चलता रहा जमीं पर, क्यों अब मैं उड़ रहा हूँ |
राहों में सीधे चलकर, क्यों अब मैं मुड़ रहा हूँ ।
तराशा था खुद में हीरा, क्यों पत्थरों से जुड़ रहा हूँ|
फितरत नहीं है मेरी, फिर क्यों मैं कुढ़ रहा हूँ|
इंसान के वश में सिवाय सोचने के और कुछ नहीं है। मेरा मानना है कि कम से कम जो हाथ में है उसे सही रखना चाहिए, अगर बस सोच हमारे हाथ में है तो हमें कम से कम अपनी सोच को सही रखना चाहिए। वाकि ईश्वर को जो करना है वह तो होकर ही रहेगा। मगर हमारी सोच कहीं न कहीं हमारा बचाव तो करती ही है। याद रहे किसी भी चीज से कोई फर्क नहीं पड़ता सिवाय सोच के। और यूँ कहें कि गहराई से देखा जाये तो सिर्फ सोच का ही फर्क होता है। आज हमारे समाज में `बहुत विसंगतियां हैं जिनका असर आज हम सभी झेल रहे हैं और अपना अमूल्य समय इन विसंगतियों की चर्चाओं में शामिल हो कर बर्बाद कर रहे हैं। सिर्फ चर्चा और कुछ नहीं।