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Raat ke Jugnoo

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कविता का सीधा सम्बन्ध हमारी अनुभूतियों से है। हम अपनी ज़िन्दगी से, आस-पास के लोगों एवं सामाजिक परिस्थितियों से जो कुछ सीखते समझते हैं, उन्हीं के आस्वाद से उत्पन्न भावनाओं की अभिव्यक्ति को कविता कहते हैं। मेरी समझ में कवि कविता नहीं रचता बल्कि कविता कवि को रचती है। कविता ने मुझे किस तरह रचा है यह आप मेरी कविताओं से गुजरेंगे तो स्वयं इसका अनुभव करेंगे।

'रात के जुगनु' मेरा दूसरा काव्य संग्रह है। अगर इस काव्य संग्रह के नामकरण पर पर बात करें तो यह मेरे पास सहज ही आ गया। कारण भी स्पष्ट कर दूँ कि मेरी लिखीं ज़्यादातर कविताएँ रात रची गईं हैं, जब सभी सो रहे होते हैं तो मेरे अंदर कविताएँ वैसे ही उड़ती-जगमगाती निकलती हैं, जैसे रात में झाड़ियों से जुगुनू निकलते हैं। रात होती है और मेरे अंतर्मन में पहले बेचैनी सी होती है. फिर कविताएँ फूटने लगती हैं।

मुझे रात में आशा के टिमटिमाते जुगनु दिखाई देने लगते हैं। मैं घोर अंधकार में जुगनुओं की झिलमिलाहट में आशा की झिलमिलाहट देखती हूँ। मेरे लिए मेरी कविताएँ आशा रूपी जुगनु की तरह हैं। मेरी कविताएँ मेरी जिंदगी की रातों को उजाले से भर देती हैं । फिर चाहे वह दिन- रात वाली सामान्य रात हो या ज़िन्दगी के कठिन समय वाली काली भयावह रात। मेरी कविताएँ मेरे लिए आशा के जुगनू हैं तो कभी संजीवनी बन जाती हैं।

जुगनु छोटा हो कर भी बहुत बड़ी सीख देता है, ठीक उसी प्रकार, कविता कम शब्दों में बड़ी बातें कह देती है।जो रात के जुगनु के महत्त्व को समझ गया वह बहुत कुछ समझ गया, कविताओं को भी।
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