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आप्तवाणी-६

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‘अटकण’ की वजह से हम अनंत जन्मो से भटक रहे है|हकीकत में खुद के पास आत्मा का परमानंद है, परंतु दैहिक सुखों की अटकणों में डूब गए है| यह अटकण ज्ञानीपुरुष की कृपा से टूट सकती है|यह जगत जैसा है वैसा है|उसमें हमे ‘खुद’ की सेफ साइड ढूँढ निकालनी है|
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